खेती में अच्छी फसल के लिए अच्छी खाद का होना बेहद ज़रूरी है। वहीं, जैविक खेती करने वाले ज़्यादातर किसान घर पर ही जैविक खाद बनाते हैं। इस तरह की खाद कृषि अपशिष्ट, गोबर और रसोई के कचरे से बनाई जाती है। आज हम आपको गुजरात के एक ऐसे गाँव की कहानी बता रहे हैं, जहाँ महिलाएँ जैविक खाद के व्यवसाय से अच्छा मुनाफ़ा कमा रही हैं।
हम बात कर रहे हैं नवसारी (गुजरात) के एक छोटे से गाँव हंसपुर की। यहाँ की महिलाएँ कचरे से काला सोना पैदा कर रही हैं। अपने खेतों में अच्छी फसल के लिए जैविक खाद बनाने के साथ-साथ, वे उसका व्यवसाय करके अतिरिक्त कमाई भी कर रही हैं। इसी गाँव की एक ऐसी ही महिला हैं हेमलता पटेल।
पांच साल से परिवार की महिलाएं बना रही हैं खाद
हेमलता के परिवार में जैविक खेती होती है, जिसके लिए वह तरह-तरह की जैविक खाद तैयार करती हैं। हेमलता की भाभी जयाबेन ने पाँच साल पहले खाद बनाने का काम शुरू किया था। जिसके बाद कुछ ही सालों में कई बहनें इससे जुड़ गईं। हालाँकि, कोरोना के कारण जयाबेन अब इस दुनिया में नहीं हैं। लेकिन आज हेमलता उनका काम संभाल रही हैं।
वह कहती हैं, "हमने जैविक खेती के लिए जैविक खाद बनाना शुरू किया। आज से 5-6 साल पहले हमने 'आत्मा प्रोजेक्ट' के तहत प्रशिक्षण लिया था। प्रशिक्षण में बताया गया कि जैविक खाद कैसे बनती है और इसके क्या फायदे हैं? फिर उन्होंने हमें वर्मी कम्पोस्ट बनाने की ट्रेनिंग भी दी। साथ ही, इस खाद को बनाने के लिए हमें दो वर्मीबेड भी मिले हैं।"
हेमलता और उनकी भाभी का काम देखकर, गाँव की 12-15 महिलाएँ उनसे प्रशिक्षण लेने आईं। उन सभी को 'फार्म फर्स्ट' के माध्यम से दो-दो वर्मी बेड दिए गए, और अब ये सभी बहनें आज जैविक खाद बनाने का काम कर रही हैं।
घर पर आसानी से बनाई जा सकती है खाद
हेमलता ने बताया कि यह खाद लगभग दो महीने में तैयार हो जाती है और इसे बनाने में ज्यादा मेहनत भी नहीं लगती।
सबसे पहले कम्पोस्ट बेड पर गोबर की एक परत बिछाई जाती है। फिर उस पर हरे कचरे की एक परत बनाई जाती है। इसके लिए पेड़ की बेल, गीली घास, पत्ते आदि का इस्तेमाल किया जाता है। इस तरह कई परतें बन जाती हैं।
जब क्यारी भर जाती है, तो उसके ऊपर केंचुए डाल दिए जाते हैं। बाद में, इस क्यारी को ढक दिया जाता है और केंचुओं को अपना काम करने दिया जाता है। वे धीरे-धीरे इस कचरे में ऊपर-नीचे होकर खाद तैयार करते हैं। प्रशिक्षण के बाद पहली बार इन महिलाओं को केंचुए भी निःशुल्क दिए गए।
हेमलता कहती हैं, "एक बार खाद तैयार हो जाने के बाद, जब खाद को छान लिया जाता है तो केंचुए अलग हो जाते हैं और उनका दोबारा उपयोग किया जाता है।"
खाद ऊँची जगह पर तैयार की जाती है, जहाँ पानी जमा न हो। ऊपर एक शेड भी बनाया जाता है। एक बार गोबर और हरे कचरे की परत बन जाने के बाद, ज़्यादा मेहनत नहीं लगती। बस उसमें नियमित रूप से पानी छिड़कना होता है।
इस समय हेमलता के घर में कुल 13 वर्मीकम्पोस्ट बेड हैं। एक बेड में खाद बनने में करीब 2 महीने का समय लगता है। खाद बनने के बाद वह इसे अपने खेतों में इस्तेमाल करती हैं और बची हुई खाद अपने गांव और आसपास के गांवों के किसानों को बेचती हैं। इसे बेचने के लिए वह 50 किलो का एक बैग खाद तैयार करती हैं। एक बैग खाद की कीमत 250 रुपये है। वहीं, वर्मीबेड बेड से उन्हें करीब 20-22 बैग खाद मिल जाती है। यानी एक वर्मी से उन्हें हर दो महीने में करीब तीन हजार की अतिरिक्त कमाई हो जाती है। बिस्तर ।
गांव की अन्य महिलाएं भी करती हैं खाद का कारोबार
उनके गाँव की एक और महिला इलाबेन कहती हैं, "हेमलताबेन को देखकर मैंने भी यह काम शुरू किया। आज मेरे पास खाद बनाने के लिए तीन क्यारियाँ हैं। मैं पिछले तीन सालों से जैविक खाद बना रही हूँ। इससे न सिर्फ़ मेरे खेत की उत्पादकता बढ़ी है, बल्कि गुणवत्ता भी बेहतर हुई है। इसके अलावा, मैंने तीन सालों में खाद बेचकर 50 हज़ार का मुनाफ़ा भी कमाया है।"
आज हंसपुर गाँव की लगभग हर महिला घर पर ही खाद बनाने का काम करके सालाना 25 से 30 हज़ार का मुनाफ़ा कमा रही है। इसके साथ ही, वे घर के पिछले हिस्से में किचन गार्डनिंग भी करती हैं।
अपनी आय बढ़ाने के लिए, कई महिलाओं ने अपने खेत में तालाब भी बनवाया है, जिसमें वे बारिश का पानी जमा करती हैं। वे इस पानी का इस्तेमाल खेती के लिए करती हैं। इसके साथ ही, इसमें मछली पालन भी करती हैं।
गाँव की ये महिलाएँ कभी सिर्फ़ घर के काम और खाना बनाने में ही व्यस्त रहती थीं, लेकिन आज जैविक खेती के साथ-साथ, ऐसे काम करके अतिरिक्त आय भी कमा रही हैं।
आज गांव की ये सभी महिलाएं अपनी मेहनत से आत्मनिर्भर बन चुकी हैं और अब उनकी खेती में भी आत्मनिर्भरता आ गई है।
चाहे शिक्षित हों या अशिक्षित, ये महिलाएं आज इतनी जागरूक हो गई हैं कि वे खेती से संबंधित नए प्रशिक्षण कार्यक्रमों में सक्रिय रूप से भाग लेती हैं।